कैंपीलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया प्रमुख कारण।
80% मरीजों को 6 महीने तक चलने में दिक्कत।
स्वास्थ्य विभाग ने 25,578 घरों का सर्वे किया।
एजेंसी, पुणे। महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से लोगों को डरा रखा है। इस बीमारी से पहली मौत पुणे के सोलापुर हो गई है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि 9 जनवरी को पुणे में पहला केस सामने आया था। इस समय 101 एक्टिव मरीज हो चुके हैं, जिनमें 16 की हालत गंभीर है। उनको वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा है।
सिंड्रोम की बड़ी वजह एक बैक्टीरिया
सिंड्रोम का सबसे बड़ा एक कारण एक बैक्टीरिया है, जिसका नाम कैंपीलोबैक्टर जेजुनी है। GBS का पहला केस मिलने के बाद मरीज की जांच की गई, जिसमें कैंपीलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया पाया गया।
GBS के पुणे में मामले बढ़ने से स्वास्थ्य विभाग के हाथ-पांव फूल गए हैं। उन्होंने तुरंत ही पुणे में पानी का सैंपल लिया, जिससे इस बैक्टीरिया के होने की जानकारी मिल सके, लेकिन इसमें कैंपीलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया नहीं मिला।
अधिकारियों ने इस दौरान नागरिकों को सलाह दी है कि इस बीमारी से बचने के लिए गर्म पानी ही पिएं। भोजन को भी गर्म कर ही खाएं।
स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि हमने 25,578 घरों के सर्वे किए। यह आम था कि GBS के 2 मरीज निकल आएं, लेकिन बीते कुछ दिनों से इसके मामलों में चौंकाने वाली तेजी आई है। यह सामान्य नहीं है, इसलिए घरों की जांच की जा रही है।
GBS का इलाज महंगा
GBS से पीड़ित मरीजों के इलाज में बहुत खर्चा आता है। इसका एक इंजेक्शन 20 हजार रुपए का पड़ता है। डॉक्टरों ने बताया कि मरीज को इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन दिया जाता है। एक बुजुर्ग मरीज को कम से कम 13 इंजेक्शन का कोर्स करना पड़ता है।
डॉक्टरों के अनुसार GBS से पीड़ित मरीज के स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ता है। 80 प्रतिशत मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद 6 महीने का समय बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने में लगता है। 20 प्रतिशत मरीजों को एक साल तक का समय लग जाता है।